शब्दों की दुनिया
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पिछले १०-१२ सालों से छात्र – छात्राओं को पढ़ाने का सौभाग्य मौका मिल रहा है. इस कारण से सैकड़ों छात्र – छात्राओं से परिचय है . जब तब घूमते फिरते हुए कोई न कोई मिल ही जाता है या फिर फोन पर लम्बी लम्बी बातें होती रहती हैं तो अनुज जी को लगता है कि प्रभु जी के काफी सारे चेले विस्तृत क्षेत्र में मौजूद हैं . जहाँ भी जाओ , वहीं इनका कोई न कोई चेला मिल ही जाता है . इसी बात से प्रभावित होकर उन्होंने एक कुंडली छंद की रचना ब्रज भाषा में की है जो आप की सेवा में प्रस्तुत है –
चेला चेली घूमते प्रभु के एक हजार
बामन, नाई, गडरिया, धोबी, जाट, चमार
धोबी, जाट, चमार, हाट, गली, रेल, बसन में
जैसै आक के बीज उड़ें अन्जान दिसन में
जंगल, नेट, बिदेस, देस में फैलौ फैला
ईसुर जानै कहा करिंगे प्रभु के चेला
– अनुज चौहान जी
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