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शब्दों की दुनिया
शब्दों की दुनिया
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हर आदमी लोकप्रिय होना चाहता है . इसके लिए चाहे कोई भी कीमत क्यूँ न अदा करनी पड़े . कोई भी तरीका क्यूँ न अपनाना पड़े . पर अक्सर हम देखते हैं कि प्रसिद्ध व्यक्ति भीड़ से भागने लगता है , बचने लगता है .वही भीड़ जिसके लिए उसने हजारों तरह के पापड़ बेले थे , अपने जीवन को नकली बना डाला था , रातों की नींद उड़ा ली थी , पैरों में पहिये लगवा लिए थे , नाते रिश्तेदारों से दूरियां बना ली थी , दोस्तों से हैलो हाय भी करना भूल गये थे . आज वही भीड़ कांटे की तरह चुभती है , कीचड़ की तरह लिपटने को तैयार रहती है , पहले भीड़ प्रेमिका थी ,आज पत्नी हो गयी है . जिसके सपने हम लिया करते थे ,आज हम उसे सपनों में से खदेड़ने को कमर कस रहे है . ज़फ़र साहब कहते हैं कि-
उम्रे दराज मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गये दो इंतजार में
आधी उम्र तो भीड़ जुटाने में निकल गयी और आधी उसे भगाने में निकल जाएगी . पता भी नही लगेगा कि हमने क्या जिन्दगी, कौन सी जिन्दगी जीने की दुआ मांगी थी . ऐसा महसूस होगा कि जैसे माँगा तो वरदान था मिल गया अभिशाप ………

– प्रभु दयाल हंस

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