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मेमने, तुझे मर ही जाना चाहिए

शब्दों की दुनिया
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मेमने, तुझे मर ही जाना चाहिए

मेमने, सुन !
इस धरती पर तुझे उगाया गया है
सब्जियों की तरह
संतरे सा रसदार
बब्बूगोसे सा नर्म ,
अनार सा पौष्टिक
प्रत्येक सब्जी से ज्यादा स्वादिष्ट
अपना कोमल शरीर देख
भोली सूरत देख और याद कर
लाठी और भैंस वाली कहावत
दुनिया नही है तेरे लिए
तू बना है दुनिया के लिए
तुझे देख कर बढ़ जाती है भूख
चूहे खेलने लगते हैं कबड्डी पेट में
दांतों में आ जाती है अजीब सी सख्ती
और चमक
विकासवाद का सिद्धांत घूमने लगता है
दिमाग में
भेड़िया सही कहता है –
गाली जरूर तूने ही दी होगी
तूने नही तो तेरे बाप ने दी होगी
चाहे मन ही मन में दी हो
तेरी नियति है मरना
घास पानी के अभाव में या
पानी गन्दा करने के लिए या
मन ही मन गाली देने के लिए
मत देख इधर उधर
एक तरफ सिर्फ भेड़िये हैं –
दांत चमकाते, लार टपकाते
दूसरी तरफ हैं -पंक्तिबद्ध भेड़ें
अपनी बारी का इंतजार करते हुए
भले ही भेड़ियों से चौगुनी ,अठगुनी…..
विरोध को चबा रही हैं घास के साथ
गुस्सा पी लिया है पानी की जगह
मस्त हैं.. व्यस्त हैं…
किनसे उम्मीद करता है ?
इनसे, जिनके खून में लोहा नही है
हड्डियाँ भुरभुरा गयी हैं
जो नही जानते संख्या बल का महत्त्व
जो परमेश्वर से शक्ति नही ,
आत्मा की शांति मांगते हैं
मेमने , तुझे मर ही जाना चाहिए
तूने गाली जरूर दी होगी
तूने नही तो तेरे बाप ने दी होगी
चाहे मन ही मन में दी हो
तुझे मर ही जाना चाहिए
– प्रभु दयाल हंस

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