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रिश्ते
रिश्ते समुद्र हैं
खूब गहरे , विशाल
आँखों की सीमा से परे
कानों की शक्ति से परे
दिल से जुड़े , सांसों में बसे
सीप शंख वाले
सांप मछली वाले रिश्ते
रिश्ते सच में समुद्र हैं
कितने ही ज्वार- भाटे
रोते सोते हँसते गाते
इस समुद्र में आते
ले जाते पाताल की गहराई
तक कभी कभी
तो बिठा देते आसमान की ऊंचाई
पर भी
कैसे संभालूं आसमान छूती लहरों को
कैसे रोकूँ गर्त में गिरती तरंगों को
रिश्ते तो समुद्र ही हैं
समुद्र क्या किसी से सम्भाला गया है ?
लहरों को बहलाया बहकाया गया है ?
लहरों पर बह जाओ
बिन कहे कह जाओ
सुख की सीमा नही होती
दुःख का अंत नही होता
बहने का आनंद ही कुछ और है
रिश्ते जख्मों पर पानी की धार
ठंडी होती आग को थोडा सा प्यार
लहरों पर बहना यानी सब सहना
सब सुनना , सब कहना
द्वीप नही, दीप ढूंढ
सांप नही , सीप ढूंढ
रिश्ते तो समुद्र है
रिश्ते तो समुद्र ही हैं
– प्रभु दयाल हंस
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